રવિવાર, 31 જાન્યુઆરી, 2016

तृतीया विभक्ति
{करण कारक (क्रिया सम्पन्न करने का साधन) में तृतीया विभक्ति होती है।}

वणिक् तुलया धान्यं माति = बनिया तराजू से धान तोल रहा है।
लेखिका लेखन्या लेखं लिखति = लेखिका लेखनी से लेख लिखती है।
सूक्ष्मशरीरेण आत्मा अतति = सूक्ष्म शरीर से आत्मा सतत गति (एक से दूसरे शरीर में) करता है।
पक्षेण पक्षिणः डयन्ते = पंख से पक्षी उड़ते हैं।
हस्तेन हस्ती भारं वहति = सूंड से हाथी भार ढोता है।
मनस्वी मनसा मनुते = मनस्वी मन से मनन करता है।
मनीषी मनीषया मनः ईषते = मनीषी बुद्धि से मन को जानता है।
पण्डितः पण्ड्या पण्डितत्वं प्राप्नोति = पण्डित बुद्धि (=पण्डा) से विद्वत्ता (=पण्डितत्व) को प्राप्त करता है।
बुद्धः बुद्ध्या बोध्यम् अवबुध्यते = ज्ञानी (=बुद्धः) बुद्धि से जाननेयाग्य पदार्थों को जानता है।
वेत्ता विद्यया विश्वं वेत्ति = विद्वान् विद्या से सब कुछ जानता है।
स्मर्त्ता स्मृत्या भूतकालं स्मरति = याद करनेवाला स्मृति से भूतकाल को याद करता है।
ज्ञानी ज्ञानेन ईश्वरमपि जानाति = ज्ञानी ज्ञान से ईश्वर को भी जान लेता है।
भर्त्ता भृत्त्या भृत्यं भरति = पालक (=भर्त्ता) वेतन (=भृत्तिः) से सेवक (=भृत्य) का भरण-पोषण करता है।
यात्री यानेन यात्रास्थलं याति = यात्री वाहन से यात्रास्थल को जाता है।
दाता दानेन दरिद्रं उपकरोति = दाता दान से दरिद्र का उपकार करता है।
ध्याता ध्यानेन धर्त्तारं ध्यायति = ध्यान करनेवाला (=ध्याता) ध्यान के द्वारा धारण करनेवाले ईश्वर (=धर्त्ता) का चिन्तन करता है।
द्रष्टा दर्शनेन दृश्यं पश्यति = ज्ञानी (=द्रष्टा) दर्शनशास्त्र के द्वारा संसार (=दृश्यम्) को देखता है।

શુક્રવાર, 29 જાન્યુઆરી, 2016

भो मित्राणि !!
पठन्तु स्मरन्तु वाक्याभ्यासञ्च कुर्वन्तु !!

द्वितीया विभक्तिः (द्विकर्मक धातुएं)

5. दण्ड

मनुः चौरं हस्तच्छेदं दण्डयति = मनुराजा चोर के हाथ काटने का दण्ड देता है।

यत्र प्राकृतं जनं रुप्यकं दण्डयेत् राजानं तत्र सहस्रगुणं दण्डयेत् = जिस अपराध के लिए प्रजा को एक रुपए से दण्डित किया जाए उसी अपराध के लिए राजा को हजारगुणा दण्ड प्रावधान होवे।

6. रुध्

गोशालिकः गाः गोशालाम् अवरुणद्धि = गऊसेवक गायों को गोशाल में रोकता है।

रक्षकभटाः अपहारकं विमानपत्तनं रुन्ध्युः = पुलिस अपहरणकर्ता को हवाईअड्डे पर रोक देवे।

वायुः वृष्टिं अन्तरिक्षम् अवरोत्स्यति = हवा का बहाव बारिश को आकाश में रोक देगी।

7. प्रच्छ्

पिता पुत्रं प्रश्नं पृच्छति = पिता पुत्र से प्रश्न करता है।

गुरुं धर्मं पृच्छेत् = गुरु से धर्म के विषय में पूछे।

विवाहकांङ्क्षिणी सुता मातरं गृहस्थधर्मं प्रक्ष्यति = विवाह की इच्छुक पुत्री माता से गृहस्थ के कर्त्तव्यों को पूछेगी।

पान्थं पन्थानं पृच्छतु = पथिक से रास्ता पूछो।

8. चि

मञ्जुजुला मल्लिकां मञ्जुलानि कुसुमानि चेष्यति = मंजुला मल्लिका के सुन्दर फूलों को तोड़ेगी।

पाटलपादपं पाटलानि प्रसूनानि मा चिनोतु = गुलाब के पौधों से गुलाब मत तोड़ो।

9. ब्रू

परस्परं सत्यं ब्रूयात् = एक दूजे के साथ सदा सत्य बोलना चाहिए।

मा ब्रवीतु अनृतं कञ्चन = किसी के साथ झूठ न बोले।

सत्यवादी सर्वान् सत्यमेव वक्ष्यति = सत्यवादी सभी से सत्य ही बोलेगा।

10. शास्

अध्यापकाः शिष्यान् सदाचारं शिष्युः = अध्यापक शिष्यों को सदाचार का उपदेश करें।

पुरोहितः यजमानं संस्कारान् शास्तु = पुरोहित यजमान को संस्कारों का उपदेश करे।

11. जि

नृपः शत्रून् धनं जयति = राजा शत्रु से धन को जीतता है।

मित्रं सखायं समयं जेष्यति = मित्र अपने मित्र से शर्त जीत जाएगा।

12. मथ्

भ्रातृव्या दधि नवनीतं मथ्नाति = भतीजी दही बिलोके मक्खन निकालती है।

क्रान्तदर्शिणः प्रकृतिं नवीनान् आविष्कारान् अमथिषुः = क्रान्तदर्शियों ने प्रकृति का मन्थन कर नयी-नयी खोजें कीं।

वैयाकरणा महान्तं शब्दोघं व्याकरणं अमथन् = वैयाकरणों ने विशाल शब्दराशि से व्याकरण को मथा।

13. मुष्

चौरः प्रतिवेशिनं धनं मुष्णाति = चोर पडोसी के धन को चुराता है।

शाटिकाः स्त्रियः बुद्धिं मोषिष्यति = साड़ियां महिलाओं की मति को चुरा ले जाएंगी।

બુધવાર, 27 જાન્યુઆરી, 2016

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सन्दिग्धे परलोकेऽपि,
कर्तव्यः पुण्यसञ्चयः।
नास्ति चेन्नास्ति नो हानिः,
अस्ति चेन्नास्तिको हतः।।
                  (श्लोकवार्तिक)

   अर्थात् परलोक में संशय हो तो भी पुण्य का सञ्चय करते चलो । अगर परलोक नहीं है तो आस्तिक का कोई नुकसान नहीं है । कहीं परलोक सत्य हुआ तो नास्तिक मारा जाएगा।

जय श्री कृष्ण...

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સોમવાર, 25 જાન્યુઆરી, 2016

🌺 अथर्ववेद 7/115/4 🌺

रमन्ताँ पुण्या लक्ष्मीर्या: पापीस्ता अनीनशम्।

पुण्यकी कमाई मेरे घरकी शोभा बढाये, पापकी कमाईको मैने नष्ट कर दिया है।

🌺 श्रीकृष्णाश्रम वैदिक पाठशाला 🌺

રવિવાર, 24 જાન્યુઆરી, 2016

🌷 ऋग्वेद 1/114/1
     यजुर्वेद 16/48 🌷

विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम्।

इस ग्राममे सब नीरोग और हृष्ट-पुष्ट हो।

🌷 श्रीकृष्णाश्रम वैदिक पाठशाला 🌷

શુક્રવાર, 22 જાન્યુઆરી, 2016

।। ॐ सुभाषितम् ॐ  ।।          
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः॥
   नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, बादल अपने बरसाए पानी द्वारा उगाया हुआ अनाज स्वयं नहीं खाते। सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है। 🌹सुप्रभातम्🌹