મંગળવાર, 8 માર્ચ, 2016

🔆 पुरातन भारतीय समाज में नारी

आजकल सम्पूर्ण देश में यह बहस चल रही है की महिलाओं पे हो रहे अत्याचार का मूल कारण आदि काल से ही इनका तिरस्कृत होना,सम्मानहीन होना और पुरुषों द्वारा बलात् दबा के रखना है।
आप सभी को वास्तविकता से अवगत करवाती पोस्ट...

🔹पुरातन भारतीय समाज में नारी समाज में पूजित थी, आज भी पत्नी के विना हिंदुओं का कोई धार्मिक संस्कार पूर्ण नहीं होता।

🔸 वैदिक युग में स्त्रियाँ कुलदेवी मानी जाती थी।

🔹स्त्रियाँ केवल घर तक ही सिमित नहीं थी अपितु रण-क्षेत्र और अध्ययन-अध्यापन में भी उनका बराबर योगदान था।

🔸गार्गी,मैत्रेयी,कैकयी,लोपमुद्रा,घोषा,रानी लक्ष्मीबाई आदि अनगिनत उदहारण उपलब्ध है।

🔹विवाह में वर व कन्या की मर्जी को पूर्ण समर्थन प्राप्त था- स्वयम्वर प्रथा इसका उदहारण है।

🔸पुत्र के अभाव में पिता की संपत्ति का अधिकार पुत्री को प्राप्त था।

🔹 आपस्तम्ब-धर्मसूत्र(2/29/3) में कहा गया है- पति तथा पत्नी, दोनों समान रूप से धन के स्वामी है।

🔸 नारियों के प्रति अन्याय न हो, वे शोक ना करे, न वो उदास होवे ऐसे उपदेश मनुस्मृति में प्राप्त है, यथा-

✅ शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा।।

जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती है, उस कुल का शीघ्र विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ प्रसन्न रहती है, वह कुल सदा उन्नति को प्राप्त करता है।

✅ यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।

जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती वहाँ समस्त कर्म व्यर्थ है।

🔸 अन्यत्र कहा गया है-
नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तम् भववारिधौ।
संसार-समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है।

🔹यः सदारः स विश्वास्य: तस्माद् दारा परा गतिः।
जो सपत्नीक है वह विश्वसनीय है। अतएव, पत्नी नर की परा गति होती है।

🔸 भारत में नारी को गौरी तथा भवानी की तरह देवी समझा जाता था।

🔹हर्षचरित में बाणभट्ट ने मातृगर्भ में आई राज्यश्री का वर्णन करते हुए लिखा है- " देवी यशोमती ने देवी राज्यश्री को उसी प्रकार गर्भ में धारण किया जिस प्रकार नारायणमूर्ति ने माँ वसुधा को।"

🔸पुरातन भारतीय समाज में पुनर्विवाह और तलाक तक की व्यवस्था थी।

🔹पत्नी का परित्याग कुछ विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता था, तथा परित्याग से पूर्व उसकी अनुमति आवश्यक थी।

🔸परित्यक्ता स्त्री के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उसके पति की थी, चाहे वो पति के घर रहे अथवा अपने रिश्तेदारों के।

🔹 विधवा अगर पुत्रहीन हो तो वो अपने पति की संपत्ति की अधिकारी मानी जाती थी।

🔸पुरातन काल में स्त्रियों को राज्यसंचालन करने का अधिकार भी प्राप्त था। जैसे-

1⃣ कश्मीर नरेश अनन्त की रानी सूर्यमति।

2⃣ कल्याणी के चालुक्य वंशी राजाओं ने अपनी राजकुमारियों को प्रदेशों की प्रशासिका नियुक्त किया।

3⃣ काकतीय रानी रुद्रम्मा ने रुद्रदेव महाराज के नाम से 40 वर्षों तक शासन किया, जिसकी प्रशंसा मार्कोपोलो ने अपने वृत्तांत में की है।

4⃣ बंगाल के सेन  राजाओं ने अपनी रानियों को अनुदान स्वरुप गाँव,जागीरे व जमीने दी।

इस प्रकार यह कहा जा सकता है की प्राचीन भारतीय समाज में नारी सम्मानित,सुरक्षित तथा स्वतन्त्र थी।

नारियों की वर्तमान दशा के लिए पुरातन भारतीय संस्कृति व परम्परा को जिम्मेवार मानने वालों को सोचना चाहिए।

नारी जितनी सम्मानित,सुरक्षित और स्वतंत्र भारतीय सनातन परम्परा में है उतनी पाश्चात्य में ना कभी थी ना कभी होगी।

✳भारत में नारी भोग्या नहीं अपितु पूज्या है।

✳ हमारी भाषा का बैभव देखिये --- स्त्री में पुरुष शब्द का अब्शेष भी नहीं है स्त्री स्वतन्त्र शब्द है परन्तु आंग्ल भाषा में वुमेन्स , वुमेन्स में मेन्स है वु-- मेन्स ।

✳ जिन देशोंमें नारीकी इज्जत न होती हो....जिन देशोंमें नारीको काले कपडोंसे ढाँक देते हो...या जिन देशोंमें नारीको कम कपडे दिए जाते हो. .witch कहकर मारा जाता हो...या जिन देशोंमें नारीयों पुरुषोंजैसे बाल बनाने व पुरुषोंजैसे कपडे पहनने पडते हो ...ऐसे देशोंमें "महिला दिवस" मनाना जादा जरुरी।


★ आप सभी को महिला दिवस की शुभकामनायें...

શુક્રવાર, 4 માર્ચ, 2016

🌾Good Morning 🌾

भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः
नवाम्बुभिर्भूरिविलम्बिनो घनाः ।
अनुद्धताः सत्पुरुषाः समृद्धिभिः
स्वभाव एवैषः परोपकारिणाम् ॥

🌾Meaning🌾

फल आने पर वृक्ष नीचे झूकते हैं, नये जल से भरे बादल नीचे झूकते हैं, समृद्धि के कारण सज्जन अनुद्धत होते है, परोपकारि व्यक्तिओ का ऐसा स्वभाव होता हैं।

On bearing fruits, trees bend (i.e. become humble),with new [recently] gathered water, clouds hang very low,wealthy good men maintain non-arrogant nature,this is the nature of benevolent persons.

ગુરુવાર, 3 માર્ચ, 2016

रथस्यैकं चक्रं भुजगयमिताः सप्ततुरगाः निरालंबो मार्गश्चरणविकलो सारथिरपि ।रविर्यात्यंतं प्रतिदिनमपारस्य नभसः क्रियासिद्धिः सत्त्वे भवति महतां नोपकरणे ॥

सात घोडे, रथ का एक ही चक्र, साप की लगाम, निरालंब मार्ग, अपंग सारथि तथापि सूरज रोज अपार आकाश के अंत की ओर जाता है, महान पुरूषों के लिए क्रिया की सफलता आंतरिक सत्व पर आधारित है बाह्य साधनो पर नहीं ।

Everyday the sun travels to the end of endless sky in a single wheeled chariot having seven horses controlled by serpents on an unsupported road with a charioteer having disabled foot. The actions of great people are accomplished by theirinner strength, not by the means of doing it.
॥ गायत्रीमन्त्राः ॥
1 सूर्य ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
 2 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकिरणाय धीमहि तन्नो भानुः प्रचोदयात् ॥
 3 ॐ प्रभाकराय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
4 ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पाशहस्ताय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
5 ॐ भास्कराय विद्महे महद्द्युतिकराय धीमहि तन्न आदित्यः प्रचोदयात् ॥
6 ॐ आदित्याय विद्महे सहस्रकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
7 ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
8 ॐ भास्कराय विद्महे महाद्द्युतिकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात् ॥
9 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
10 ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृतत्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
11ॐ निशाकराय विद्महे कलानाथाय धीमहि तन्नः सोमः प्रचोदयात् ॥
12 अङ्गारक, भौम, मङ्गल, कुज ॐ वीरध्वजाय विद्महे विघ्नहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
13 ॐ अङ्गारकाय विद्महे भूमिपालाय धीमहि तन्नः कुजः प्रचोदयात् ॥
 14 ॐ चित्रिपुत्राय विद्महे लोहिताङ्गाय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
15 ॐ अङ्गारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात् ॥
 16बुध ॐ गजध्वजाय विद्महे सुखहस्ताय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
 17ॐ चन्द्रपुत्राय विद्महे रोहिणी प्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
18 ॐ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात् ॥
19 गुरु ॐ वृषभध्वजाय विद्महे क्रुनिहस्ताय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
 20 ॐ सुराचार्याय विद्महे सुरश्रेष्ठाय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
 21 शुक्र ॐ अश्वध्वजाय विद्महे धनुर्हस्ताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
22 ॐ रजदाभाय विद्महे भृगुसुताय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
23ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नः शुक्रः प्रचोदयात् ॥
 24शनीश्वर, शनैश्चर, शनी ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥
25ॐ शनैश्चराय विद्महे सूर्यपुत्राय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात् ॥
 26 ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः सौरिः प्रचोदयात् ॥
27 राहु ॐ नाकध्वजाय विद्महे पद्महस्ताय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
28 ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात् ॥
29 केतु ॐ अश्वध्वजाय विद्महे शूलहस्ताय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
30 ॐ चित्रवर्णाय विद्महे सर्परूपाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
31 ॐ गदाहस्ताय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नः केतुः प्रचोदयात् ॥
32 पृथ्वी ॐ पृथ्वी देव्यै विद्महे सहस्रमर्त्यै च धीमहि तन्नः पृथ्वी प्रचोदयात् ॥
33 ब्रह्मा ॐ चतुर्मुखाय विद्महे हंसारूढाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
34 ॐ वेदात्मनाय विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
35 ॐ चतुर्मुखाय विद्महे कमण्डलुधराय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
36 ॐ परमेश्वराय विद्महे परमतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
37 विष्णु ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
38 नारायण ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
39 वेङ्कटेश्वर ॐ निरञ्जनाय विद्महे निरपाशाय (?) धीमहि तन्नः श्रीनिवासः प्रचोदयात् ॥
40 राम ॐ रघुवंश्याय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
41 ॐ दाशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
42 ॐ भरताग्रजाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
43 ॐ भरताग्रजाय विद्महे रघुनन्दनाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
44 कृष्ण ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
45 ॐ दामोदराय विद्महे रुक्मिणीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
46 ॐ गोविन्दाय विद्महे गोपीवल्लभाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ।
47 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥
48 पाण्डुरङ्ग ॐ भक्तवरदाय विद्महे पाण्डुरङ्गाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
49 नृसिंह ॐ वज्रनखाय विद्महे तीक्ष्णदंष्ट्राय धीमहि तन्नो नारसिꣳहः प्रचोदयात् ॥
50 ॐ नृसिंहाय विद्महे वज्रनखाय धीमहि तन्नः सिंहः प्रचोदयात् ॥
51 परशुराम ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नः परशुरामः प्रचोदयात् ॥
52 इन्द्र ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥
53 हनुमान ॐ आञ्जनेयाय विद्महे महाबलाय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् ॥
54 ॐ आञ्जनेयाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनूमान् प्रचोदयात् ॥
55 मारुती ॐ मरुत्पुत्राय विद्महे आञ्जनेयाय धीमहि तन्नो मारुतिः प्रचोदयात् ॥
56 दुर्गा ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्यकुमारी च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
57 ॐ महाशूलिन्यै विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
58 ॐ गिरिजायै च विद्महे शिवप्रियायै च धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
59 शक्ति ॐ सर्वसंमोहिन्यै विद्महे विश्वजनन्यै च धीमहि तन्नः शक्तिः प्रचोदयात् ॥
60 काली ॐ कालिकायै च विद्महे श्मशानवासिन्यै च धीमहि तन्न अघोरा प्रचोदयात् ॥
61 ॐ आद्यायै च विद्महे परमेश्वर्यै च धीमहि तन्नः कालीः प्रचोदयात् ॥
62 देवी ॐ महाशूलिन्यै च विद्महे महादुर्गायै धीमहि तन्नो भगवती प्रचोदयात् ॥
63 ॐ वाग्देव्यै च विद्महे कामराज्ञै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
64 गौरी ॐ सुभगायै च विद्महे काममालिन्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
65 लक्ष्मी ॐ महालक्ष्मी च विद्महे विष्णुपत्नीश्च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
66 ॐ महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
67 सरस्वती ॐ वाग्देव्यै च विद्महे विरिञ्चिपत्न्यै च धीमहि तन्नो वाणी प्रचोदयात् ॥
68 सीता ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे भूमिजायै च धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥
69 राधा ॐ वृषभानुजायै विद्महे कृष्णप्रियायै धीमहि तन्नो राधा प्रचोदयात् ॥
70 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्न अन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
71 तुलसी ॐ तुलसीदेव्यै च विद्महे विष्णुप्रियायै च धीमहि तन्नो बृन्दः प्रचोदयात् ॥
72 महादेव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
73 रुद्र ॐ पुरुषस्य विद्महे सहस्राक्षस्य धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
74 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥
75 शङ्कर ॐ सदाशिवाय विद्महे सहस्राक्ष्याय धीमहि तन्नः साम्बः प्रचोदयात् ॥
76 नन्दिकेश्वर ॐ तत्पुरुषाय विद्महे नन्दिकेश्वराय धीमहि तन्नो वृषभः प्रचोदयात् ॥
77 गणेश ॐ तत्कराटाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
78 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
79 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे हस्तिमुखाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
80 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
81 ॐ लम्बोदराय विद्महे महोदराय धीमहि तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ॥
82 षण्मुख ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः स्कन्दः प्रचोदयात्॥
83 ॐ षण्मुखाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षष्ठः प्रचोदयात् ॥
84 सुब्रह्मण्य ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महासेनाय धीमहि तन्नः षण्मुखः प्रचोदयात् ॥
85 ॐ ॐ ॐकाराय विद्महे डमरुजातस्य धीमहि! तन्नः प्रणवः प्रचोदयात् ॥
86 अजपा ॐ हंस हंसाय विद्महे सोऽहं हंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
87 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥
88 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्मणे धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
89 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
90 अग्नि ॐ सप्तजिह्वाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥
91 ॐ वैश्वानराय विद्महे लालीलाय धीमहि तन्न अग्निः प्रचोदयात् ॥
92 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निदेवाय धीमहि तन्नो अग्निः प्रचोदयात् ॥
93 यम ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे महाकालाय धीमहि तन्नो यमः प्रचोदयात् ॥
94 वरुण ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नो वरुणः प्रचोदयात् ॥
95 वैश्वानर ॐ पावकाय विद्महे सप्तजिह्वाय धीमहि तन्नो वैश्वानरः प्रचोदयात् ॥
96 मन्मथ ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पवनाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात् ॥
97 हंस ॐ हंस हंसाय विद्महे परमहंसाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
98 ॐ परमहंसाय विद्महे महत्तत्त्वाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
99 नन्दी ॐ तत्पुरुषाय विद्महे चक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो नन्दिः प्रचोदयात् ॥
100 गरुड ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
101 सर्प ॐ नवकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नः सर्पः प्रचोदयात् ॥
102 पाञ्चजन्य ॐ पाञ्चजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि तन्नः शङ्खः प्रचोदयात् ॥
103 सुदर्शन ॐ सुदर्शनाय विद्महे महाज्वालाय धीमहि तन्नश्चक्रः प्रचोदयात् ॥
104 अग्नि ॐ रुद्रनेत्राय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो वह्निः प्रचोदयात् ॥
105 ॐ वैश्वानराय विद्महे लाललीलाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥
106 ॐ महाज्वालाय विद्महे अग्निमथनाय धीमहि तन्नोऽग्निः प्रचोदयात् ॥
107 आकाश ॐ आकाशाय च विद्महे नभोदेवाय धीमहि तन्नो गगनं प्रचोदयात् ॥
108 अन्नपूर्णा ॐ भगवत्यै च विद्महे माहेश्वर्यै च धीमहि तन्नोऽन्नपूर्णा प्रचोदयात् ॥
109 बगलामुखी ॐ बगलामुख्यै च विद्महे स्तम्भिन्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
110 बटुकभैरव ॐ तत्पुरुषाय विद्महे आपदुद्धारणाय धीमहि तन्नो बटुकः प्रचोदयात् ॥
111 भैरवी ॐ त्रिपुरायै च विद्महे भैरव्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
112 भुवनेश्वरी ॐ नारायण्यै च विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
113 ब्रह्मा ॐ पद्मोद्भवाय विद्महे देववक्त्राय धीमहि तन्नः स्रष्टा प्रचोदयात् ॥
114 ॐ वेदात्मने च विद्महे हिरण्यगर्भाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
115 ॐ परमेश्वराय विद्महे परतत्त्वाय धीमहि तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात् ॥
116 चन्द्र ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्त्वाय धीमहि तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात् ॥
117 छिन्नमस्ता ॐ वैरोचन्यै च विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
118 दक्षिणामूर्ति ॐ दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थाय धीमहि तन्नो धीशः प्रचोदयात् ॥
119 देवी ॐ देव्यैब्रह्माण्यै विद्महे महाशक्त्यै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
120 धूमावती ॐ धूमावत्यै च विद्महे संहारिण्यै च धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात् ॥
121 दुर्गा ॐ कात्यायन्यै विद्महे कन्याकुमार्यै धीमहि तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ॥
122 ॐ महादेव्यै च विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥
123 गणेश ॐ तत्पुरुषाय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
124 ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ॥
125 गरुड ॐ वैनतेयाय विद्महे सुवर्णपक्षाय धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
126 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सुवर्णपर्णाय (सुवर्णपक्षाय) धीमहि तन्नो गरुडः प्रचोदयात् ॥
127 गौरी ॐ गणाम्बिकायै विद्महे कर्मसिद्ध्यै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
128 ॐ सुभगायै च विद्महे काममालायै धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
129 गोपाल ॐ गोपालाय विद्महे गोपीजनवल्लभाय धीमहि तन्नो गोपालः प्रचोदयात् ॥
130 गुरु ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात् ॥
131 हनुमत् ॐ रामदूताय विद्महे कपिराजाय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
132 ॐ अञ्जनीजाय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ॥
133 हयग्रीव ॐ वागीश्वराय विद्महे हयग्रीवाय धीमहि तन्नो हंसः प्रचोदयात् ॥
134 इन्द्र, शक्र ॐ देवराजाय विद्महे वज्रहस्ताय धीमहि तन्नः शक्रः प्रचोदयात् ॥
135 ॐ तत्पुरुषाय विद्महे सहस्राक्षाय धीमहि तन्न इन्द्रः प्रचोदयात् ॥
136 जल ॐ ह्रीं जलबिम्बाय विद्महे मीनपुरुषाय धीमहि तन्नो विष्णुः प्रचोदयात् ॥
137 ॐ जलबिम्बाय विद्महे नीलपुरुषाय धीमहि तन्नस्त्वम्बु प्रचोदयात् ॥
138 जानकी ॐ जनकजायै विद्महे रामप्रियायै धीमहि तन्नः सीता प्रचोदयात् ॥
139 जयदुर्गा ॐ नारायण्यै विद्महे दुर्गायै च धीमहि तन्नो गौरी प्रचोदयात् ॥
140 काली ॐ कालिकायै विद्महे श्मशानवासिन्यै धीमहि तन्नोऽघोरा प्रचोदयात् ॥
141 काम ॐ मनोभवाय विद्महे कन्दर्पाय धीमहि तन्नः कामः प्रचोदयात् ॥
142 ॐ मन्मथेशाय विद्महे कामदेवाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात् ॥
143 ॐ कामदेवाय विद्महे पुष्पबाणाय धीमहि तन्नोऽनङ्गः प्रचोदयात् ॥
144 कामकलाकाली ॐ अनङ्गाकुलायै विद्महे
145ॐ दामोदराय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्णः प्रचोदयात् ॥
146 ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नः कृष्ण: प्रचोदयात .

બુધવાર, 2 માર્ચ, 2016

आमंत्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम्।
अयोग्य: पुरूषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभ:||

   ऐसा कोई अक्षर नही जिनसे मंत्र नही बनता हो । ऐसी कोई वनस्पति नही जिससे औषध न बनती हो । कोई मनुष्य अयोग्य नही है, उसे कार्य मे लगानेवाला (योजक) ही दुर्लभ है।

શનિવાર, 27 ફેબ્રુઆરી, 2016

सुभाषितम्
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आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानव: ।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति ॥

तात्पर्यम्
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प्रपञ्चे विद्यमाना: सर्वे अपि मनुष्या: स्वहितं, स्वसुखं च सम्पादयन्ति । अत: आत्मन: निमित्तं सर्व: अपि जन: जीवति
एव । परन्तु ये जना: अन्येषां हितम्, अन्येषां सुखं च कामयमाना: तदर्थं जीवन्ति, तेषां जीवनमेव सार्थकं जीवनम् ! धन्यं जीवनम् ! परोपकाररहितं जीवनं तु निरर्थकमेव ।

         –जय श्रीमन्नारायण।

શુક્રવાર, 5 ફેબ્રુઆરી, 2016

[2/4, 7:38 AM] Kuldeep 2: द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दॄढां शिलाम् ।
धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् ॥

जो धनवान होकर भी दान नहीं करता और जो दरिद होकर भी मेहनत नहीं करता इन दोनों को गले में बडा सा पथ्थर बांध कर  पानी में डूबा देना चाहिए ।

There are two types of people who should be pushed in deep water with heavy stones tied to their body! One who does not donate in-spite of being rich and the other who does not work hard in-spite of being poor !!

- महाभारत
[2/5, 8:52 PM] Kuldeep 2: वेदो में स्त्री के लिए कुछ प्रशंसित शब्द निम्न हैं
जो
"नारी नरकस्य द्वारं"
का खण्डन करते हैं
.
अरण्यानी (ऋग्वेद १०/१४६/१) = संन्यास आश्रम को प्राप्त
उरुधारा (यजुर्वेद ८/४२) = ज्ञान एवं सुशिक्षा को धारण करने वाली
प्रतारणी (अथर्ववेद १४/२/२६) = जीवन की पतवार
प्रतीची (अथर्ववेद ७/४६/३) = निश्चित ज्ञान वाली
मही (यजुर्वेद ८/४३) = अतिपूजनीय
सुभद्रिका (यजुर्वेद २३/१८)=उत्तम कल्याण वाली
शिवा (अथर्ववेद १९/४०/३) = कल्याणकारिणी
सुमंगली (अथर्ववेद १४/२/२६) = मंगल आचरण करने वाली
सुशेवा (अथर्ववेद १४/२/२६) = कल्याणप्रदा
स्तोमपृष्ठ (यजुर्वेद १५/३) = स्वाध्याय-शीला

બુધવાર, 3 ફેબ્રુઆરી, 2016

ॐ।

प्रथमा विभक्ति + द्वितीया विभक्ति + क्रियापद

उदाहरण:-

शिक्षक: + पाठं + करोति।
मुनिवर: + जपं + करोति।
दुष्ट: + उपहासं + करोति।
पण्डित: + वादं + करोति।

वाक्य :-

रुग्ण: चीत्कारं करोति।।
गृहणी सत्कारं करोति।
धनिक: अनुरोधं करोति।
सज्जन: त्यागं करोति।

अध्यापिका परिष्कारं करोति।
नृप: बहिष्कारं करोति।
देव: कृपां करोति।
अलस: निद्रां करोति।

भक्त: उपासनां करोति।
भिक्षुक: याचनां करोति।

आप भी ऐसे छोटे छोटे वाक्य बनाएं। संस्कृत सीखे, संस्कृत अपनाए, सिखाएं।

રવિવાર, 31 જાન્યુઆરી, 2016

तृतीया विभक्ति
{करण कारक (क्रिया सम्पन्न करने का साधन) में तृतीया विभक्ति होती है।}

वणिक् तुलया धान्यं माति = बनिया तराजू से धान तोल रहा है।
लेखिका लेखन्या लेखं लिखति = लेखिका लेखनी से लेख लिखती है।
सूक्ष्मशरीरेण आत्मा अतति = सूक्ष्म शरीर से आत्मा सतत गति (एक से दूसरे शरीर में) करता है।
पक्षेण पक्षिणः डयन्ते = पंख से पक्षी उड़ते हैं।
हस्तेन हस्ती भारं वहति = सूंड से हाथी भार ढोता है।
मनस्वी मनसा मनुते = मनस्वी मन से मनन करता है।
मनीषी मनीषया मनः ईषते = मनीषी बुद्धि से मन को जानता है।
पण्डितः पण्ड्या पण्डितत्वं प्राप्नोति = पण्डित बुद्धि (=पण्डा) से विद्वत्ता (=पण्डितत्व) को प्राप्त करता है।
बुद्धः बुद्ध्या बोध्यम् अवबुध्यते = ज्ञानी (=बुद्धः) बुद्धि से जाननेयाग्य पदार्थों को जानता है।
वेत्ता विद्यया विश्वं वेत्ति = विद्वान् विद्या से सब कुछ जानता है।
स्मर्त्ता स्मृत्या भूतकालं स्मरति = याद करनेवाला स्मृति से भूतकाल को याद करता है।
ज्ञानी ज्ञानेन ईश्वरमपि जानाति = ज्ञानी ज्ञान से ईश्वर को भी जान लेता है।
भर्त्ता भृत्त्या भृत्यं भरति = पालक (=भर्त्ता) वेतन (=भृत्तिः) से सेवक (=भृत्य) का भरण-पोषण करता है।
यात्री यानेन यात्रास्थलं याति = यात्री वाहन से यात्रास्थल को जाता है।
दाता दानेन दरिद्रं उपकरोति = दाता दान से दरिद्र का उपकार करता है।
ध्याता ध्यानेन धर्त्तारं ध्यायति = ध्यान करनेवाला (=ध्याता) ध्यान के द्वारा धारण करनेवाले ईश्वर (=धर्त्ता) का चिन्तन करता है।
द्रष्टा दर्शनेन दृश्यं पश्यति = ज्ञानी (=द्रष्टा) दर्शनशास्त्र के द्वारा संसार (=दृश्यम्) को देखता है।

શુક્રવાર, 29 જાન્યુઆરી, 2016

भो मित्राणि !!
पठन्तु स्मरन्तु वाक्याभ्यासञ्च कुर्वन्तु !!

द्वितीया विभक्तिः (द्विकर्मक धातुएं)

5. दण्ड

मनुः चौरं हस्तच्छेदं दण्डयति = मनुराजा चोर के हाथ काटने का दण्ड देता है।

यत्र प्राकृतं जनं रुप्यकं दण्डयेत् राजानं तत्र सहस्रगुणं दण्डयेत् = जिस अपराध के लिए प्रजा को एक रुपए से दण्डित किया जाए उसी अपराध के लिए राजा को हजारगुणा दण्ड प्रावधान होवे।

6. रुध्

गोशालिकः गाः गोशालाम् अवरुणद्धि = गऊसेवक गायों को गोशाल में रोकता है।

रक्षकभटाः अपहारकं विमानपत्तनं रुन्ध्युः = पुलिस अपहरणकर्ता को हवाईअड्डे पर रोक देवे।

वायुः वृष्टिं अन्तरिक्षम् अवरोत्स्यति = हवा का बहाव बारिश को आकाश में रोक देगी।

7. प्रच्छ्

पिता पुत्रं प्रश्नं पृच्छति = पिता पुत्र से प्रश्न करता है।

गुरुं धर्मं पृच्छेत् = गुरु से धर्म के विषय में पूछे।

विवाहकांङ्क्षिणी सुता मातरं गृहस्थधर्मं प्रक्ष्यति = विवाह की इच्छुक पुत्री माता से गृहस्थ के कर्त्तव्यों को पूछेगी।

पान्थं पन्थानं पृच्छतु = पथिक से रास्ता पूछो।

8. चि

मञ्जुजुला मल्लिकां मञ्जुलानि कुसुमानि चेष्यति = मंजुला मल्लिका के सुन्दर फूलों को तोड़ेगी।

पाटलपादपं पाटलानि प्रसूनानि मा चिनोतु = गुलाब के पौधों से गुलाब मत तोड़ो।

9. ब्रू

परस्परं सत्यं ब्रूयात् = एक दूजे के साथ सदा सत्य बोलना चाहिए।

मा ब्रवीतु अनृतं कञ्चन = किसी के साथ झूठ न बोले।

सत्यवादी सर्वान् सत्यमेव वक्ष्यति = सत्यवादी सभी से सत्य ही बोलेगा।

10. शास्

अध्यापकाः शिष्यान् सदाचारं शिष्युः = अध्यापक शिष्यों को सदाचार का उपदेश करें।

पुरोहितः यजमानं संस्कारान् शास्तु = पुरोहित यजमान को संस्कारों का उपदेश करे।

11. जि

नृपः शत्रून् धनं जयति = राजा शत्रु से धन को जीतता है।

मित्रं सखायं समयं जेष्यति = मित्र अपने मित्र से शर्त जीत जाएगा।

12. मथ्

भ्रातृव्या दधि नवनीतं मथ्नाति = भतीजी दही बिलोके मक्खन निकालती है।

क्रान्तदर्शिणः प्रकृतिं नवीनान् आविष्कारान् अमथिषुः = क्रान्तदर्शियों ने प्रकृति का मन्थन कर नयी-नयी खोजें कीं।

वैयाकरणा महान्तं शब्दोघं व्याकरणं अमथन् = वैयाकरणों ने विशाल शब्दराशि से व्याकरण को मथा।

13. मुष्

चौरः प्रतिवेशिनं धनं मुष्णाति = चोर पडोसी के धन को चुराता है।

शाटिकाः स्त्रियः बुद्धिं मोषिष्यति = साड़ियां महिलाओं की मति को चुरा ले जाएंगी।

બુધવાર, 27 જાન્યુઆરી, 2016

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सन्दिग्धे परलोकेऽपि,
कर्तव्यः पुण्यसञ्चयः।
नास्ति चेन्नास्ति नो हानिः,
अस्ति चेन्नास्तिको हतः।।
                  (श्लोकवार्तिक)

   अर्थात् परलोक में संशय हो तो भी पुण्य का सञ्चय करते चलो । अगर परलोक नहीं है तो आस्तिक का कोई नुकसान नहीं है । कहीं परलोक सत्य हुआ तो नास्तिक मारा जाएगा।

जय श्री कृष्ण...

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સોમવાર, 25 જાન્યુઆરી, 2016

🌺 अथर्ववेद 7/115/4 🌺

रमन्ताँ पुण्या लक्ष्मीर्या: पापीस्ता अनीनशम्।

पुण्यकी कमाई मेरे घरकी शोभा बढाये, पापकी कमाईको मैने नष्ट कर दिया है।

🌺 श्रीकृष्णाश्रम वैदिक पाठशाला 🌺

રવિવાર, 24 જાન્યુઆરી, 2016

🌷 ऋग्वेद 1/114/1
     यजुर्वेद 16/48 🌷

विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्मिन्ननातुरम्।

इस ग्राममे सब नीरोग और हृष्ट-पुष्ट हो।

🌷 श्रीकृष्णाश्रम वैदिक पाठशाला 🌷

શુક્રવાર, 22 જાન્યુઆરી, 2016

।। ॐ सुभाषितम् ॐ  ।।          
पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहाः
परोपकाराय सतां विभूतयः॥
   नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीती, वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते, बादल अपने बरसाए पानी द्वारा उगाया हुआ अनाज स्वयं नहीं खाते। सत्पुरुषों का जीवन परोपकार के लिए ही होता है। 🌹सुप्रभातम्🌹